भारत के शेयर बाजार में हुए सबसे बड़े घोटाले

भारत के शेयर बाजार में हुए सबसे बड़े घोटालों पर चर्चा करना समझने के लिए महत्वपूर्ण है कि किस प्रकार ये घोटाले भारतीय वित्तीय प्रणाली पर असर डालते हैं। यहाँ तीन प्रमुख घोटालों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है: केतन पारेख घोटाला (2001), हर्षद मेहता घोटाला (1992), और सत्यम घोटाला (2009)।

1. केतन पारेख घोटाला (2001) – 40 हजार करोड़ रुपए

केतन पारेख को ‘किंग ऑफ द रिंग’ के नाम से जाना जाता था। यह घोटाला 2001 में हुआ था, जिसमें केतन पारेख ने लगभग 40 हजार करोड़ रुपए का घोटाला किया। पारेख ने “के-10” नामक शेयरों में निवेश किया और बैंकों से ऋण लेकर इन शेयरों की कीमतों को कृत्रिम रूप से बढ़ाया। बाद में शेयर गिरने के बाद निवेशकों को भारी नुकसान उठाना पड़ा। यह घोटाला भारतीय वित्तीय तंत्र में निवेशकों के विश्वास को हिला गया था, जिसके परिणामस्वरूप भारतीय रिजर्व बैंक और सेबी ने नए नियम लागू किए।

2. हर्षद मेहता घोटाला (1992) – 5 हजार करोड़ रुपए

हर्षद मेहता को ‘बिग बुल’ कहा जाता था और उनके घोटाले ने पूरे देश को हिला दिया था। 1992 में हुए इस घोटाले में मेहता ने बैंकिंग प्रणाली का गलत उपयोग कर लगभग 5 हजार करोड़ रुपए का घोटाला किया। उन्होंने बैंकों से बांड खरीदने का दावा करके फर्जी तरीके से पैसे का निवेश शेयर बाजार में किया और कुछ विशेष शेयरों की कीमतें बढ़ाईं। लेकिन जब घोटाले का पर्दाफाश हुआ, तो शेयर बाजार में बड़ी गिरावट आई और कई निवेशक अपनी पूंजी खो बैठे। इस घोटाले के बाद सेबी ने कई सख्त नियमों को लागू किया ताकि भविष्य में इस प्रकार की गतिविधियों को रोका जा सके।

3. सत्यम घोटाला (2009) – 7 हजार करोड़ रुपए

2009 में सत्यम कंप्यूटर सर्विसेज़ के संस्थापक बी. रामलिंगा राजू द्वारा किए गए इस घोटाले ने कॉर्पोरेट गवर्नेंस के नियमों पर सवाल उठाए। राजू ने कंपनी के खातों में हेरफेर कर 7 हजार करोड़ रुपए का फर्जी मुनाफा दिखाया। जब यह घोटाला उजागर हुआ, तो सत्यम के शेयर धारकों को भारी नुकसान हुआ और कंपनी को एक नई मैनेजमेंट टीम के अंतर्गत बेचना पड़ा। इस घोटाले के बाद सरकार ने कॉर्पोरेट क्षेत्र में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए नए नियम बनाए।

निष्कर्ष

इन घोटालों ने भारतीय शेयर बाजार को एक बड़ा झटका दिया और निवेशकों के बीच भय का माहौल बनाया। हालांकि, इन घटनाओं के बाद भारतीय वित्तीय प्रबंधन और नियमों में सुधार किए गए जिससे निवेशकों की सुरक्षा को प्राथमिकता दी जा सके। इन घोटालों का अध्ययन करने से न केवल वित्तीय अनुशासन की आवश्यकता समझ में आती है, बल्कि यह भी समझ आता है कि कैसे पारदर्शिता और नियामक सुधारों से बाजार की विश्वसनीयता में वृद्धि होती है।